भारत अब हथियारों के वैश्विक बाजार में उतरने की पूरी तैयारी में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति ने अब तक देश ने फार्मा उत्पादों से लेकर हाई-टेक गैजेट्स तक के निर्माण और निर्यात में खुद को साबित किया है। अब सरकार की नजर मिसाइल, हेलिकॉप्टर और युद्धपोत जैसे अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों के निर्यात पर है। इसके लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए सरकारी एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक (EXIM) को उन देशों को सस्ते और दीर्घकालिक लोन देने की छूट दी है, जिनकी राजनीतिक या आर्थिक हालत के कारण उन्हें आमतौर पर बैंकिंग सुविधा नहीं मिल पाती।
भारत खासकर उन देशों को टारगेट कर रहा है जो अब तक रूस से हथियार खरीदते रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद कई देशों ने नए रक्षा आपूर्तिकर्ता तलाशने शुरू कर दिए हैं और भारत इस मौके को हथियार निर्यात बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। इसके लिए भारत दुनियाभर में अपने दूतावासों में 20 नए रक्षा अटैची तैनात कर रहा है, जिनका काम होगा – हथियारों की मार्केटिंग करना, स्थानीय सरकारों की जरूरतें समझना और सौदे करवाना।
EXIM बैंक के ज़रिए सस्ते लोन की पेशकश
भारत सरकार ने रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक ऑफ इंडिया (EXIM Bank) के माध्यम से कम-ब्याज दर वाले लोन प्रदान करने की योजना शुरू की है। EXIM बैंक एक सरकारी स्वामित्व वाला वित्तीय संस्थान है जिसकी स्थापना 1982 में की गई थी। इसका उद्देश्य भारतीय निर्यातकों को वित्तीय सहायता देना और विदेशी व्यापार में भारत की हिस्सेदारी को बढ़ाना है। यह बैंक खासतौर पर उन देशों को लोन देने में मदद करता है जिनकी राजनीतिक या क्रेडिट जोखिम प्रोफाइल अधिक होती है, यानी जिन्हें पारंपरिक बैंकों से ऋण मिलना मुश्किल होता है। भारत की इस योजना में मुख्य रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया के वे देश शामिल हैं जो रक्षा उपकरण खरीदना चाहते हैं लेकिन फाइनेंसिंग की दिक्कतों से जूझ रहे हैं। EXIM बैंक अब ऐसे सौदों के लिए लंबी अवधि का कर्ज, क्रेडिट गारंटी, और लाइन ऑफ क्रेडिट जैसी सुविधाएं देगा, जिससे भारतीय हथियार कंपनियाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ्रांस, तुर्की और चीन जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा कर सकेंगी। यह मॉडल उन्हीं देशों की रणनीतियों से प्रेरित है, जो अपने रक्षा सौदों के साथ आकर्षक फाइनेंसिंग भी उपलब्ध कराते हैं। सरकार का उद्देश्य सिर्फ हथियार बेचना नहीं है, बल्कि एक स्थायी रक्षा साझेदारी और आर्थिक सहयोग को भी बढ़ावा देना है।
रक्षा एटैशे की नियुक्ति और कूटनीतिक सक्रियता
भारत सरकार रक्षा निर्यात को रणनीतिक रूप से बढ़ावा देने के लिए नए रक्षा प्रतिनिधि (Defence Attache) की नियुक्ति कर रही है। योजना के अनुसार, मार्च 2026 तक कम से कम 20 नए रक्षा प्रतिनिधि को उन देशों में तैनात किया जाएगा जहां परंपरागत रूप से रूस पर रक्षा खरीद के लिए निर्भरता रही है। इनमें अफ्रीका के अल्जीरिया, मोरक्को, इथियोपिया और तंज़ानिया, दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना, ब्राज़ील और गुयाना, तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के कंबोडिया जैसे देश शामिल हैं।
इन रक्षा प्रतिनिधि को भारत के हथियारों और रक्षा प्रणालियों का स्थानीय प्रचार-प्रसार करने, होस्ट देशों की रक्षा ज़रूरतों का आकलन करने और संभावित सौदों को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी गई है। इसके अतिरिक्त, उन्हें यह अधिकार भी दिया गया है कि वे स्थानीय सरकारों से रणनीतिक बातचीत कर सकें और भारत की रक्षा कंपनियों के लिए बाजार का रास्ता साफ करें।
यह कदम भारत की रक्षा कूटनीति को और मज़बूत बनाता है और यह दिखाता है कि भारत अब सिर्फ रक्षा उत्पाद बनाने वाला देश नहीं रहना चाहता, बल्कि वैश्विक रक्षा बाज़ार में एक सक्रिय खिलाड़ी बनना चाहता है।
दुनिया भर में बढ़ता भारतीय रक्षा निर्यात
हाल के वर्षों में भारत का रक्षा निर्यात अभूतपूर्व गति से बढ़ा है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने 85 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात किया, जिसकी पुष्टि भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय और प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) ने की है। इस अवधि में भारत ने लगभग ₹16,000 करोड़ (करीब $2 बिलियन) मूल्य के हथियार, गोला-बारूद, रक्षा उपकरण और तकनीकी सिस्टम विदेशों को भेजे, जो अब तक का सबसे ऊँचा वार्षिक आंकड़ा है। अगर तुलना करें तो वर्ष 2014-15 में यह रक्षा निर्यात मात्र ₹2,000 करोड़ के आसपास था। यह तेज़ी से हुआ विकास दर्शाता है कि भारत ने अपने रक्षा उत्पादन और निर्यात क्षमताओं को मज़बूती से बढ़ाया है, और अब वह वैश्विक रक्षा आपूर्ति श्रृंखला में एक भरोसेमंद साझेदार बनने की ओर अग्रसर है।
कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाला माल
भारत अब कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाले रक्षा उपकरण बनाने के मामले में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। उदाहरण के तौर पर, भारत में 155 मिमी आर्टिलरी शेल की उत्पादन लागत मात्र $300–$400 प्रति यूनिट है, जबकि यही गोला यूरोपीय बाज़ारों में $3000 से अधिक में बिकता है। इसी तरह, भारत में बनी Howitzers तोपों की कीमत लगभग $3 मिलियन प्रति यूनिट है, जो यूरोपीय समकक्षों की तुलना में लगभग आधी है। यह भारत को उन देशों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाता है जो उच्च गुणवत्ता के साथ-साथ किफायती हथियारों की तलाश में हैं। भारत की कई निजी कंपनियाँ जैसे Adani Defence, SMPP, Bharat Forge और L&T Defence अब उन्नत तकनीक से लैस हथियारों का निर्माण कर रही हैं, जिनमें बड़ी कैलिबर की तोपें, आर्टिलरी गोले और आधुनिक युद्ध प्रणाली शामिल हैं। यह परिवर्तन भारत की रक्षा उत्पादन क्षमताओं में एक क्रांतिकारी बदलाव का संकेत देता है।
रणनीतिक डील और प्रदर्शन
रणनीतिक डील और प्रदर्शन भारत अब न केवल हथियार बना रहा है, बल्कि उन्हें वैश्विक स्तर पर रणनीतिक सौदों और प्रदर्शन के ज़रिए सक्रिय रूप से बेच भी रहा है। भारत की अब तक की सबसे बड़ी रक्षा निर्यात डील फिलीपींस को $375 मिलियन की BrahMos सुपरसोनिक मिसाइल बिक्री रही है, जिसने भारत को एक भरोसेमंद मिसाइल सप्लायर के रूप में स्थापित किया। इसके अलावा, भारत अब ब्राज़ील के साथ Akash मिसाइल प्रणाली और युद्धपोत निर्माण को लेकर बातचीत कर रहा है, जो भविष्य के लिए एक बड़ा रक्षा सहयोग बन सकता है। इस रणनीति को मज़बूती देने के लिए भारत की प्रमुख रक्षा कंपनी Bharat Electronics ने हाल ही में ब्राज़ील के Sao Paulo में एक नया मार्केटिंग कार्यालय भी खोला है, ताकि वहां की ज़रूरतों के मुताबिक तकनीकी समाधान और समर्थन दिया जा सके। ये कदम भारत के वैश्विक रक्षा बाज़ार में गहरी पैठ बनाने की दिशा में निर्णायक साबित हो रहे हैं।
संपूर्ण रक्षा निर्यात नीति का उद्देश्य
भारत की संपूर्ण रक्षा निर्यात नीति अब मात्र उत्पादों को बेचने तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि इसका उद्देश्य दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारियाँ स्थापित करना है। सरकार ने वर्ष 2029 तक $6 बिलियन (लगभग ₹50,000 करोड़) मूल्य के रक्षा निर्यात का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है। इसके तहत भारत न केवल रक्षा उपकरणों की बिक्री कर रहा है, बल्कि तकनीक, प्रशिक्षण और सहयोग के माध्यम से दीर्घकालिक रक्षा सहयोग को भी बढ़ावा दे रहा है। यह नीति भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन से भी जुड़ी हुई है, जिसके अंतर्गत सरकार ने अब तक 500 से अधिक रक्षा उपकरणों को "आयात बंद सूची" (import ban list) में डाल दिया है। इसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और भारत को एक वैश्विक रक्षा निर्माण केंद्र बनाना है। यह नीति भारत की रक्षा क्षमताओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ उसे एक भरोसेमंद वैश्विक रक्षा भागीदार के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब कई देशों को पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं पर संदेह हुआ, भारत ने खुद को एक कम लागत, भरोसेमंद और रणनीतिक रक्षा साझेदार के रूप में प्रस्तुत किया। सस्ती वित्तीय मदद, तकनीकी प्रदर्शन और कूटनीतिक सक्रियता ने भारत को एक नई पहचान दिलानी शुरू कर दी है।