भारत में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल साकार होने जा रही है। मध्यप्रदेश के सागर जिले में स्थित वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (पूर्व नाम नौरादेही अभयारण्य) को अब देश का पहला ऐसा टाइगर रिजर्व बनने का गौरव प्राप्त होगा, जहां बाघ, तेंदुआ और चीता – बिग कैट फैमिली के तीन प्रमुख सदस्य – एक साथ प्राकृतिक आवास में रहेंगे। यह न केवल भारत बल्कि दुनिया के लिए भी एक अनूठा प्रयोग होगा।
चीतों की वापसी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में अंतिम बार चीता (Asiatic Cheetah) को 1947 में छत्तीसगढ़ (अब छत्तीसगढ़ राज्य, तब मध्य प्रदेश का हिस्सा) के कोरिया ज़िले में देखा गया था। उस समय राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने तीन चीतों का शिकार किया था। यही घटना भारत में चीतों के प्राकृतिक रूप से पाए जाने का अंतिम रिकॉर्डेड उदाहरण मानी जाती है। इसके बाद भारत सरकार ने लंबे समय तक चीतों के न मिलने और शिकार के चलते उनकी प्रजाति को लुप्त मान लिया, और 1952 में भारत सरकार ने औपचारिक रूप से चीते को "विलुप्त" (Extinct) घोषित कर दिया। इसके बाद से भारत में चीते की पुनर्स्थापना को लेकर कई बार विचार हुआ, लेकिन यह सपना वर्षों तक अधूरा रहा।
साल 2022 में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुछ चीते लाकर मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में बसाए गए। यह प्रयोग अभी चल ही रहा है कि अब भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा दो नए स्थानों की पहचान की गई है – गुजरात का बन्नी ग्रासलैंड और मध्य प्रदेश का वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व।
15 साल पुरानी योजना, अब होने जा रही साकार
Wildlife Institute of India ने चीता परियोजना के लिए सबसे पहले 2010 में ही नौरादेही रिजर्व को उपयुक्त बताया था। तब किए गए सर्वे में यहां की तीन रेंज – मुहली, सिंहपुर और झापन – को चीता पुनर्स्थापना के लिए आदर्श माना गया था। इन रेंजों में विस्तृत घास के मैदान हैं, जो चीता जैसे तेज धावक शिकारी के लिए उपयुक्त हैं।
अब जब चीता परियोजना राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय हो चुकी है, तो नौरादेही – अब वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व – को इस परियोजना का हिस्सा बनाया जा रहा है। अनुमान है कि 2026 तक यहां चीते शिफ्ट कर दिए जाएंगे।
वन्यजीव विशेषज्ञों की राय: क्या तीन शिकारी एक साथ रह सकते हैं?
यह स्वाभाविक सवाल है कि क्या तीनों शिकारी – बाघ, तेंदुआ और चीता – एक ही स्थान पर सह-अस्तित्व में रह सकते हैं? वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, यह संभव है क्योंकि इन तीनों की शिकार शैली और शिकार की पसंद में अंतर होता है:
· बाघ – बड़े जानवरों जैसे नीलगाय, भैंसा, सांभर आदि का शिकार करता है।
· तेंदुआ – मध्यम आकार के जानवरों जैसे जंगली सूअर, हिरण आदि का शिकार करता है।
· चीता – छोटे और हल्के जानवरों जैसे चीतल, काला हिरण, खरगोश आदि का पीछा कर शिकार करता है।
इसके अलावा, चीता स्वभाव से शर्मिला और अन्य बड़े शिकारी से दूरी बनाए रखने वाला जीव है। इसलिए, वह स्वाभाविक रूप से बाघ और तेंदुए से बचकर रहना पसंद करता है, जिससे संघर्ष की संभावना कम होती है। जैसे तेंदुआ बाघ के साथ सामंजस्य में रह लेता है, उसी तरह चीता भी इस पारिस्थितिकी में फिट हो सकता है।
रिजर्व का विस्तार और बसाहट में चुनौतियाँ
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 2339 वर्ग कि.मी. है, जिसमें से मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज का क्षेत्रफल करीब 600 वर्ग किमी है। इन इलाकों में उपयुक्त आवास, पर्याप्त शिकार और खुले मैदान चीता के लिए आदर्श माने गए हैं।
हालांकि, एक बड़ी चुनौती है – स्थानीय गांवों का विस्थापन। मुहली गांव सबसे बड़ा है, जिसकी जनसंख्या करीब 1500 है। इन क्षेत्रों में बसे गांवों को हटाना और लोगों को पुनर्वास देना एक संवेदनशील और खर्चीला कार्य है। अनुमानित लागत 200 करोड़ रुपए तक हो सकती है। लेकिन जब तक इन क्षेत्रों को पूरी तरह से संरक्षित वन क्षेत्र नहीं बनाया जाएगा, चीता की सुरक्षा संभव नहीं हो सकेगी।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और आने वाले चीते
चीतों की इस पुनर्स्थापना परियोजना में भारत को अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी मिल रहा है। दक्षिण अफ्रीका का "चीता मेटा पॉपुलेशन प्रोजेक्ट" भारत में चीता भेजने का कार्य कर रहा है। अब तक नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीते भारत लाए जा चुके हैं और आगे बोत्सवाना और अन्य अफ्रीकी देशों से भी कुछ और चीते आने वाले हैं।
ये सभी चीते विशेष रूप से चयनित, स्वस्थ और रेडियो कॉलर से युक्त होते हैं, ताकि उनकी निगरानी और अनुकूलन प्रक्रिया की गहन समीक्षा की जा सके।
एकीकृत जैव विविधता मॉडल
यह परियोजना केवल एक जीव को बसाने की नहीं, बल्कि एक जैविक सह-अस्तित्व मॉडल बनाने की पहल है। टाइगर रिजर्व में पहले से बाघ और तेंदुआ हैं। चीते के आने से यह वन क्षेत्र ‘बिग कैट्स’ के लिए एक अनूठा आवास बन जाएगा। इससे पर्यावरणीय अध्ययन, संरक्षण नीति और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए नई दिशा मिलेगी।
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में बाघ, तेंदुआ और चीता – तीनों की उपस्थिति भारत के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित हो सकती है। यह परियोजना केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि प्राकृतिक सहअस्तित्व, पारिस्थितिकीय संतुलन और मानव-प्रकृति सहयोग का प्रतीक बन सकती है।
पर्यटन, अनुसंधान और संरक्षण के इस संगम से यह रिजर्व आने वाले समय में न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल बन सकता है। हालांकि, इसके लिए सुनियोजित विस्थापन, स्थानीय सहभागिता और सतत निगरानी की नीतियों को पूरी गंभीरता से लागू करना होगा। तभी यह अनूठा प्रयोग सफल हो सकेगा – और भारत एक बार फिर उस गौरवशाली युग की ओर बढ़ सकेगा, जब चीता हमारी धरती का स्वाभाविक हिस्सा हुआ करता था।