मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाल ही में प्रदेश में जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन हेतु कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की हैं। उन्होंने भगोरिया उत्सव को राजकीय स्तर पर मनाने की घोषणा करते हुए कहा कि यह पर्व फागुन के रंगों से सराबोर उल्लास और आनंद का प्रतीक है। इस उत्सव के माध्यम से जनजातीय समाज की समृद्ध परंपराओं को सहेजने और उन्हें राज्य स्तर पर मान्यता देने का निर्णय लिया गया है।
भगोरिया उत्सव का राजकीय मान्यता की ओर कदम
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने यह स्पष्ट किया कि भगोरिया उत्सव को इसी वर्ष से राजकीय उत्सव के रूप में मनाया जाएगा। साथ ही, उन्होंने यह भी घोषणा की कि सरकार छोटे-छोटे स्थानों पर स्थित जनजातीय देवी-देवताओं के पूजा स्थलों को विकसित करने के लिए सहायता प्रदान करेगी। कोरकू उत्सव सहित अन्य जनजातीय त्योहारों को भी राज्य स्तर पर मनाने की दिशा में सरकार ठोस प्रयास कर रही है।
भगोरिया उत्सव एक पारंपरिक लोक पर्व
भगोरिया उत्सव मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्रों में रहने वाली भील और भावसार जनजातियों का एक प्रमुख पारंपरिक त्योहार है। यह होली से पहले फाल्गुन महीने में मनाया जाता है और इसे प्रेम व मेल-मिलाप का उत्सव भी कहा जाता है।
कहाँ मनाया जाता है?
भगोरिया उत्सव मुख्य रूप से झाबुआ, अलीराजपुर, धार, बड़वानी, खरगोन और खंडवा जिलों में मनाया जाता है। यह एक हाट (बाजार) के रूप में आयोजित किया जाता है, जहां दूर-दूर से लोग इकट्ठा होते हैं।
उत्सव की खास बातें
पारंपरिक हाट (बाजार) - यह उत्सव विभिन्न स्थानों पर लगने वाले हाटों के रूप में आयोजित होता है, जिसमें लोग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होते हैं।
प्रेम विवाह की परंपरा - भगोरिया मेले में युवक-युवतियां गुलाल लगाकर और पान खिलाकर अपने जीवनसाथी चुनते हैं. इसके बाद, परिजनों की सहमति से शादी की जाती है।
नृत्य और संगीत - भील और अन्य जनजातियां इस दौरान पारंपरिक नृत्य और गीतों का आयोजन करती हैं, जिसमें मांदल (ड्रम) की धुन पर नाच-गाना होता है।
रंगों का त्योहार - भगोरिया को होली से पहले मनाया जाता है, इसलिए इसमें रंगों की भी विशेष भूमिका होती है। लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाकर खुशी मनाते हैं।
व्यापार और मेल-मिलाप - इस हाट में न केवल उत्सव का माहौल होता है, बल्कि लोग अपनी जरूरत का सामान भी खरीदते हैं।
भगोरिया का महत्व
भगोरिया केवल एक त्योहार ही नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति का जीवंत उदाहरण है। यह सामाजिक मेल-जोल और आपसी प्रेम को बढ़ाने वाला उत्सव है। राज्य सरकार भी इस पारंपरिक मेले को संरक्षित करने और इसे पर्यटन से जोड़ने के लिए प्रयासरत है।
जनजातीय संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा
मुख्यमंत्री निवास में आयोजित जनजातीय देवलोक महोत्सव में मुख्यमंत्री ने जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करने और उनके धार्मिक मुखियाओं का सम्मान करने की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज की पूजा पद्धतियाँ, रीति-रिवाज, संस्कृति और संस्कार हमारी धरोहर हैं, जिन्हें सुरक्षित रखने के लिए सरकार हर संभव प्रयास करेगी।
महोत्सव की शुरुआत जनजातीय परंपरा के अनुरूप बड़े देव पूजन और दीप प्रज्ज्वलन से हुई। जनजातीय कलाकारों ने पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य और वाद्य यंत्रों की धुन पर शानदार प्रस्तुतियाँ दीं। मुख्यमंत्री ने सभी आगंतुकों का पुष्पवर्षा कर स्वागत किया।
जनजातीय समाज के लिए आर्थिक सहायता
मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि जनजातीय नर्तकों और वाद्य कलाकारों को प्रोत्साहन के रूप में पाँच-पाँच हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। इसके अलावा, प्रदेश की सभी पेसा ग्राम पंचायतों को जनजातीय देवस्थानों के संरक्षण हेतु तीन-तीन हजार रुपये की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
जनजातीय अधिकारों को सशक्त बनाने की दिशा में पहल
पेसा एक्ट के माध्यम से सरकार ने जनजातीय समाज को अधिक अधिकार संपन्न बनाने का कार्य किया है। मुख्यमंत्री ने बताया कि जल जीवन मिशन को सफल बनाने की जिम्मेदारी जनजातीय मंत्री श्रीमती संपतिया उइके को दी गई है और समग्र जनजातीय कल्याण की देखरेख मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह करेंगे। सरकार ने 2.5 लाख से अधिक वन अधिकार पत्र जारी कर जनजातीय समुदाय को उनका हक दिलाने का कार्य किया है।
गौपालन और दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा
राज्य सरकार घर-घर गौपालन को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। किसानों को पाँच रुपये प्रति लीटर की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी और सहकारिता विभाग के माध्यम से सरकार किसानों का दूध खरीदेगी। हर पात्र व्यक्ति को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर उपलब्ध कराया जाएगा।
वन संरक्षण और जनजातीय समाज की भूमिका
मुख्यमंत्री ने वन संरक्षण में जनजातीय समुदाय की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि वनों की रक्षा में जनजातीय समाज का योगदान अतुलनीय है। सरकार जनजातीय समुदाय को हरसंभव सहयोग देगी और वनोपज का लाभांश भी वितरित किया जाएगा।
जनजातीय महोत्सव और समाज का योगदान
केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्यमंत्री श्री दुर्गादास उइके ने कहा कि जनजातीय संस्कृति भारत की आद्य संस्कृति है और इसकी रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रयासों की सराहना की और कहा कि सरकार की योजनाओं से जनजातीय क्षेत्रों का तेजी से विकास हो रहा है।
भगोरिया उत्सव को राजकीय मान्यता देने और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार द्वारा घोषित योजनाएँ जनजातीय समाज के उत्थान और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की यह पहल निश्चित रूप से प्रदेश में जनजातीय समुदाय की पहचान, संस्कृति और अधिकारों को और अधिक मजबूत बनाएगी।
(Source – Jansampark Vibhag)