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गवेषणा जीवनदृष्टि, मानव गरिमा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण 2025 के संविवेक संकल्पों की त्रयी

22 April 2025 by
THE NEWS GRIT

"गवेषणा मनवोत्तथान पर्यावरण तथा स्वास्थ्य जागरूकता समिति "

"आम सभा 30/3/2025"

गवेषणा जीवनदृष्टि सम्बंधित तीन 5,6,7 संकल्प सर्वसम्मति से स्वीकृत हुए है।

          गवेषणा की नीति सदैव असहमतियों और विरोधियों के प्रति आदरभाव की रही है। इसी कारण स्वीकृत संकल्प को सार्वजनिक मंचों पर प्रस्तुत किया गया है, ताकि हमें समीक्षा, समालोचना, विरोध तथा असहमति के मोतियों से लाभ मिल सके - और हम इनसे और अधिक पुष्ट, परिपक्व एवं फलित होकर सार्थक दिशा में आगे बढ़ सकें।

आपकी आलोचना हमारा धन है! संशाधन है!

5. गवेषणा जीवनदृष्टि के आयाम के मानव गरिमा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अर्थ, घटक व दोनों के अन्तर्सम्बन्ध पर विचार-

(क) प्रारंभिक निर्णय: - गवेषणा सर्वसम्मति से यह स्पष्ट मत व्यक्त करता है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बिना मानव गरिमा पूर्ण नही हो सकती। मानव व्यक्तित्व कि समग्रता इन दोनों तत्वों के बिना सम्भव नही है। सस्टेनेबल व प्रगतिशील मानव सभ्यता के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण व मानव गरिमा एक दूसरे के पूरक है। स्वयं वैज्ञानिक  दृष्टिकोण, मानव गरिमा का अपरिहार्य घटक है। समस्त चराचर में स्वयं की गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास केवल मानव में हुआ है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानव गरिमा दोनों ही मानव मस्तिष्क के नवीनतम विकसित भाग अग्रमस्तिष्क (नियोब्रेन) में सृजित ,परिचालित व नियंत्रित होते है। यह सामान्य स्वीकृत तथ्य है कि अग्रमस्तिष्क का विकास केवल मानव में ही हुआ है, अन्य किसी प्राणी में यह विकसित अवस्था मे नही पाया गया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानव गरिमा  ये दोनों ही विचार अंतिम सत्य की अवधारणा के विरोधी है। अतः प्रारंभिक रूप से गवेषणा सर्वसम्मति से यह स्वीकार करता है कि वैज्ञानिक दृटिकोण व मानव गरिमा के अर्थ, घटक व अन्तर्सम्बन्ध के विषय मे गवेषणा का यह दावा कभी नही होगा कि यह या उसका कोई भी मत अंतिम सत्य के रूप में है। स्वीकृत संकल्प इस आम सभा के अधिकतम ज्ञान व विश्वास के अनुसार सर्व सम्मति से स्वीकृत है। भविष्य में इसे गवेषणा द्वारा या अन्य संस्थाओं, व्यक्तियों द्वारा सुधारा जा सकता है। गवेषणा सर्वसम्मति से यह संकल्प भी स्वीकार करता है कि भविष्य में इन विचारों से केवल आगे बढ़ा जा सकता है।

(ख) 1- मानव गरिमा का अर्थ- मानव गरिमा का साधारण अर्थ बड़प्पन कह सकते है। जिस भाव के तहत व्यक्ति साधारण के लिए असाधरण व परायों के लिए अपना त्याग करने को प्रस्तुत हो जाता है। मानव गरिमा  एक आदर्श जीवनशैली है। मानव गरिमा तुलनात्मक या सापेक्ष अवस्था नही है, यह मन की भावात्मक स्थिति है। मानवगरिमा मानव को ज्ञात यूनिवर्स में  अपनी तरह कि ऐसी इकलौती सत्ता मानती है जिसने अपनी गरिमा , आत्मचेतना,  व्यक्तित्व, न्याय , संकल्पस्वतंत्रय व जीवन मूल्यों आदि का विकास किया है। मानव अपने आप में व अन्य में  सुधार करने, सहयोजित - समायोजित होने ढलने में तथा अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करने में सक्षम है। अकेले मानव ने ही निरुद्देश्य व आकस्मिक (कैजुअल) यूनिवर्स में नियोजन, उद्देश्यपूर्णता, सृजनशीलता व प्रयोजनशीलता का विकास किया है। चराचर सम्वेदी होना , वैज्ञानिक दृष्टि व सृजनशीलता धारण करना मानव गरिमा के  वर्तमान कालिक आदर्श हैं। ज्ञात यूनिवर्स में मानव अपनी तरह का  न केवल अकेला है बल्कि अकेला ही हो सकता है। इस कारण मानव को केवल मानवोचित कहा जा सकता है। उसके समकक्ष अन्य जो भी सत्ता होगी तो वह मानव की गरिमा को सीमित करेगी अतः तार्किक रूप से मानव की सत्ता अद्वितीय व अकेली ही हो सकती है।

2- मानव गरिमा के घटक- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, बौद्धिक ईमानदारी, सृजनशीलता, समझ, सार्थकता, अंतरात्मा, व्यक्तित्व,  नैतिकता, आदर्शों का महत्व जीवन से अधिक, हरित, सामाजिकता, हानि की समझ , खेल-भावना, प्रेम-भावना, पारिवारिकता दूरदृष्टा, विशेष मस्तिष्क, लिपि, साहित्य, संस्कृति- सभ्यता, कला-कौशल के अर्जन की क्षमता, साधन-साध्य औचित्य, अपनापन, सहिष्णुता,  वात्सल्य, विश्वसनीयता, प्रामाणिकता, वस्तुनिष्ठता, वीरासन (मार्टिन लूथर किंग जूनियर & भीष्म) उत्सवधर्मिता, आपसी विश्वास, करुणा, मैत्री, उपेक्षा, मुदिता, सार्वजनीयता, जीवन की प्रयोजनशीलता , उद्देश्यपूर्णता एवं सार्थकता, मानवीय ऐक्य, दायित्वबोध, विशुद्धि, ट्रांसफॉर्मेशन में सक्षम, स्वयं के अतिक्रमण में सक्षम, बोध, विशेष शारीरिक बनावट, कल्पनाशीलता, जिजीविषा, शौर्य, वर्चस्व।

(ग) 1-वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ- वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक जीवन शैली है जो  जगत की सत्यापनीयता एवं वस्तुनिष्ठ सत्ता  को तथा इन्द्रिय-प्रत्यक्ष, निरक्षण, परीक्षण, प्रयोग व तर्क द्वारा ज्ञान अर्जन व विवेक पूर्ण व्यवहार को मान्य करती है।

 2-वैज्ञानिक दृष्टिकोण के घटक- प्रश्न पूछना, संदेह, प्रयोगशीलता, निरीक्षण, परीक्षण, समझ, तर्क, वस्तुनिष्ठता, बौद्धिक ईमानदारी, प्रामाणिकता, सृजनशीलता, सार्थकता,  सार्वजनिकता, मानवीय एक्यता, कारणता।

(घ) मानव गरिमा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण में अन्तर्सम्बन्ध- सस्टेनेबल, शांतिपूर्ण,  प्रगतिशील व उत्तरआधुनिक जीवन मूल्यों पर आधारित मानव सभ्यता के विकास हेतु मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों परस्पर पूरक व एकमेक अभिवृतियाँ है। गवेषणा सर्वसम्मति से यह स्वीकार करता है कि वास्तव में हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास होने पर ही पूर्ण गरिमाशाली मानव हो पाते हैं। गवेषणा सर्व सम्मति से निम्न 36  बिन्दुओं को मान्य करता है जिन पर मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण परस्पर पूरक रूप में अन्तर्सम्बन्धित है।

1)      अग्रमस्तिष्क (नियोब्रेन) - मानव गरिमा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों मानव के अग्रमस्तिष्क में विकसित, संचालित व नियंत्रित होते है। अतः दोनों का मनोदैहिक आधार, आवश्यकतायें व संभावनाएं एक तरह की ही है।

2)     समग्र मानव व्यक्तित्व- समग्र मानव व्यक्तित्व मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों के बिना पूर्ण नही हो सकता। यदि किसी के व्यक्तित्व में वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं है तो वह मानव गरिमा धारण नही करता है। अन्य अर्थ में वह मानव ही नहीं है।

3)     बौद्धिक ईमानदारी - ज्ञान, सत्य व आचरण के विषय मे स्वयं द्वारा स्वीकृत सिद्धांतो पर स्थिर रहना व उनके तार्किक निहितार्थों व परिणामों को स्वीकार करना एवं वाद (शास्त्रार्थ) में पराजय को सहर्ष स्वीकृत करना बौद्धिक ईमानदारी के प्रमुख लक्षण है। यह आधुनिक जीवन मूल्य मानव गरिमा का बड़ा घटक है परन्तु इसकी अंतर्वस्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। इस तरह मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण इस बिंदु पर आपस में मिलते हैं।

4)     मानव मन - मानव मन या चित्त भी एक जटिल मस्तिष्कीय प्रक्रिया है। मानव मन विकास प्रक्रिया के उच्च सोपान तभी प्राप्त कर सकता है जब मन में मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण सम्यक रूप से उपस्थित हो।

5)     चराचर सम्वेदी जीवनशैली -  सम्वेदी प्रवृति वैज्ञानिक दृष्टिकोण कि अनिवार्य पूर्व शर्त है जबकि मानव गरिमा का महत्वपूर्ण आदर्श विकसित सम्वेदी प्रवृत्ति है। इस तरह दोनों एक ही चराचर सम्वेदी जीवन शैली का निर्माण करते है।

6)     सार्थकता- जीवन की सार्थकता का मार्ग एवं उपलब्धि दोनों ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण में निहित है जबकि जीवन कि सार्थकता की अंतर्वस्तु मानव गरिमा ही है। इस तरह वास्तविकता में दोनों एकमेक है।

7)     दायित्व बोध- दायित्वबोध मानव गरिमा का अनिवार्य घटक है। दायित्व का वहन व सातत्य बिना वस्तुनिष्ठ ज्ञान के सम्भव नही है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण का घटक है। अर्थात सम्यक दायित्वबोध के लिए मानव गरिमा व वैज्ञानिक सोच दोनों आवश्यक है ।

8)     पारदर्शिता- पारदर्शिता आधुनिक नैतिक मूल्य है। पारदर्शिता मानव गरिमा व वैज्ञानिक सोच दोनों के लिए समान महत्वपूर्ण है।

9)     लोक लज्जा - बेशर्मी प्रमुख सामाजिक अवगुण है जबकि अपनी गलती की समझ से उत्पन्न शर्म (आत्मग्लानी)  मानव गरिमा का प्रमुख घटक है। यदि हम में अपनी गलती के लिए  शर्म नही है तो हम बौद्धिक ईमानदारी पर स्थिर नही रह सकते इस तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण व मानव गरिमा इस बिंदु पर एक दूसरे को स्पर्श करते है।

10)  विरोध की स्वीकार्यता - विज्ञान में किसी सत्य को अंतिम नही माना जाता, विरोध के लिये सदैव रास्ता खुला रखा जाता है। इसी तरह मानव का बड़प्पन या गरिमा भी विरोध को स्वीकार करने में ही है। इस बिन्दु पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण व मानव गरिमा मिले हुये है।

11)    परम सत्य को मान्यता नहीं- किसी परम सत्य की मान्यता अंततः मानव गरिमा का छेद साबित होता है।   इसी तरह विज्ञान दर्शन में किसी अंतिम या परम सत्य की धारणा नही है।

12)  व्यवहारिक परिणाम ही अंतिम सिद्धि - मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों में व्यवहारिक परिणति ही अंतिम उपलब्धि के रूप में मान्य है।

13)  दोनों डायनामिक या गतिशील जीवन विधियां है- मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों ही स्थेतिक जीवन दृष्टियां न होकर गतिशील या डायनेमिक जीवन दृष्टियाँ है।

14)  दोनों प्रगतिशील दृष्टियाँ- मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों ही पुरोगामी या दक्षिणपंथी जीवन दृष्टियाँ न होकर प्रगतिशील जीवन दृष्टियां है।

15)  दोनों इहलोकवादी- मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों आधुनिक व इहलोकवादी जीवन दृष्टियाँ है, परलोकवादी नहीं।

16)  इसी जीवन सम्बन्धी- मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों का पूरा सरोकार इसी एक जीवन से है न कि किसी अन्य जीवन या जन्मों की परिकल्पना से। इस तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण व मानव गरिमा की आधारभूमि एक ही है।

17)  अनीश्वर वादी- वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपने विकास में निश्चित रूप से अनीश्वरवाद को अपनाता है इसी तरह मानव गरिमा की पराकाष्ठा भी निरीश्वरवाद में है। दोनों एक ही क्षितिज पर जाकर मिलते हुये प्रतीत होते हैं ।

18)  सहिष्णुता-  वैज्ञानिक दृष्टिकोण का मूलपाठ विरोधों के प्रति सहिष्णु होना है वहीं मानव गरिमा का निस्तारण भी सहिष्णुता के बिना सम्भव नही है।

19)  बहुसंस्कृतिवाद- विज्ञान जीवन व जगत में बहुत्व का पोषक है इसी तरह गरिमा बहुत्व के साथ मे ही सार्थक हो सकती है, एकत्व में गरिमा का कोई अर्थ नही है। ये मूलदृष्टि मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों को बहुसंस्कृति का पोषक बनाती है जो आदर्श जीवनदृष्टि है।

20) धर्मनिरपेक्षता- धर्मनिरपेक्षता  वैज्ञानिक दृष्टिकोण की महत्वपूर्ण परिणति एवं मानव गरिमा का महत्वपूर्ण आधार है। इसतरह धर्मनिरपेक्ष जीवनशैली में दोनों मिले हुये हैं।

21)  जीवंतता-  री हुई मछली धारा के साथ बहती है जबकि जीवित मछली धारा के विपरीत बहती है। इस तरह तर्कपूर्ण संवेदना मानवीय विद्रोही प्रवृति की जनक है जो मानव गरिमा का प्रमुख घटक भी है।

22) नैतिक व्यवस्था के लिए दोनों की समान अपेक्षा- आधुनिक व उत्तर आधुनिक जीवन मूल्यों पर आधारित नैतिक व्यवस्था आधुनिक मानव सभ्यता की आधारशिला है। इसमें दायित्व बोध व सम्वेनशीलता का आधार वैज्ञानिक दृष्टिकोण व मानव गरिमा की जीवन दृष्टि ही है।

23) वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण - जीवन व जगत के प्रति वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण वैज्ञानिक सोच के कारण आता है। वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण ही वास्तविक व गरिमामय जीवनदृष्टि का आधार बन सकता है।

24) जिज्ञासा- जिज्ञासा चराचर जगत में केवल मनुष्य की विशेषता होने के कारण मानव गरिमा का अनिवार्य घटक है। दूसरी ओर जिज्ञासा समस्त ज्ञान -विज्ञान की जननी होने के कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आधार भी है। इस प्रकार जिज्ञासा मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण में अंतर्संबंध स्थापित करने वाला प्रमुख तत्व है।

25) प्रामाणिकता- प्रामाणिकता, मानव गरिमा का महत्वपूर्ण घटक है वही प्रामाणिकता वैज्ञानिक जाँच पद्धतियों की कसौटी पर कस कर ही परखी जा सकती है। वैज्ञानिक मूल्यांकन के बगैर प्रामाणिकता पाखंड हो सकती है।

26) विश्वसनीयता- विश्वसनीयता द्वारा अन्य व्यक्तियों की दृष्टि में हमारा मूल्य निर्धारित होता है। वास्तव में हमारी गरिमा तभी सार्थक है जब वह अन्य की दृष्टि में हो। इस तरह विश्वसनीयता मानव गरिमा का महत्वपूर्ण घटक है। यदि विश्वसनीयता वैज्ञानिक परीक्षण की कसौटी पर परखी हुई नही होगी तो वह अंधविश्वास बन जायेगी। अतः विश्वसनीयता के विंदु पर मानव गरिमा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आश्रित है।

27) सृजनशीलता- सृजन या नवनिर्माण यथास्थिति की अतिक्रामक परिघटना है। सृजन या कोई नवनिर्माण विज्ञान सम्मत होगा तब ही हमारी गरिमा में अभिवृद्धि करेगा अन्यथा नही। इस तरह सृजनशीलता वैज्ञानिक दृष्टिकोण व मानव गरिमा को आपस में जोड़ता है।

28) प्रयोजनशीलता- निरुद्देश्य व आकस्मिक यूनिवर्स में मानव द्वारा प्रयोजनशीलता का विकास किया गया है। यह आकस्मिक अस्तित्व व यथास्थितिवाद दोनों के मानवीय विकल्प है। मानव गरिमा की स्पष्ट मांग है कि हम जगत में निरर्थक रूप से फेंके हुये नहीं हैं हम निश्चित उद्देश्यों की ओर सार्थक रूप से गति करने वाले है। यद्यपि प्रयोजनशीलता का आधार मानव होने की गरिमा में निहित है परन्तु प्रयोजन प्राप्ति का मार्ग निश्चय ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण है।

29) नियोजन - नियोजन से मानव गरिमा की सार्थकता सिद्ध होती है। वही तर्कपूर्ण प्राक्कलन के बिना नियोजन सम्भव नही है।

30) आत्मचेतना- आत्म चेतना का आशय स्वयं की चेतना, अपने स्वरूप की अपने अच्छे-बुरे का ज्ञान है। इस तरह आत्मचेतना का मार्ग मूल्य चेतना द्वारा निर्धारित होता है परन्तु ज्ञानात्मक स्वरूप होने के कारण आत्म चेतना स्वयं वैज्ञानिक दृष्टिकोण कि सीमाओं से आबद्ध है। इस तरह आत्मचेतना के स्तर पर मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिले हुये है

31)  संकल्प स्वातंत्र्य- नैतिक व्यवस्था व दायित्व बोध का निर्वहन संकल्प स्वातन्त्र्य के बिना सम्भव नही है। संकल्प स्वातन्त्र्य जहाँ मानव गरिमा का महत्वपूर्ण घटक है वही इसका उपयोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनिवार्य घटक, वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण को धारण किये बिना सम्भव नही है।

32) न्याय-अन्याय विवेक- नैतिक व्यवस्था व दायित्वबोध की तरह न्याय विवेक केवल मानवीय विशेषता है। दूसरी ओर तर्कीय अभिवृत्ति के बिना न्याय स्थापित करना संभव नही है।

33) खेलभावना- खेलना सीखने व उत्कृष्टता (गरिमा) प्राप्त करने का सबसे उपयुक्त माध्यम है। विरोध की स्वीकार्यता खेलभवना की प्रमुख विशेषता है। विरोधों के प्रति स्वीकार्यता वैज्ञानिक दृष्टिकोण का घटक है।

34) गौरवबोध - मानव गौरव बोध, मानव गरिमा का मेरुदंड है। परन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण व तर्कशीलता के अभाव में यह गौरव बोध दुष्टता का पर्याय भी बन सकता है। मानव होने के गौरव बोध के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सांचे के भीतर होना जरूरी है।

35) विकासवाद- विकासवाद का विचार वैज्ञानिक तथा तर्कपूर्ण है। साथ ही विकासवाद मानव गरिमा का पोषक भी है क्योंकि यह मानना अधिक गरिमा पूर्ण है कि हम अपनी अंतर्निहित शक्ति से विकसित हुए है, अपेक्षा इसके की हमारा कोई सृष्टिकर्ता है। सृष्टिकर्ता हमारी गरिमा को समाप्त करता है। विकासवाद गरिमा को बढ़ाता है। इस तरह विकासवाद में मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिले हुए है।

36) निष्ठा - निष्ठावान होना या इंटीग्रिटी चराचर में केवल मानव का गुण है। अतः निष्ठा मानव गरिमा का प्रमुख घटक है। वैज्ञानिक या सम्यक ज्ञान के बिना निष्ठा महज अंधविश्वास हो सकती है। अतः निष्ठा में मानव गरिमा व वैज्ञानिक दृष्टिकोण परस्पर मिले हुये है।

         गवेषणा सर्वसम्मति से यह स्वीकार करता है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास होने पर ही पूर्ण गरिमाशाली मानव हो पाते हैं। गवेषणा सर्वसम्मति से यह भी स्वीकार करता है कि मानव जीवन के लिये, मानव जीवन की गुणवत्ता के लिये, मानव सभ्यता के लिये और मानव सभ्यता की सस्टेनबिल्टी के लिये, मानव गरिमा तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण  का सभी 36 बिंदुओं पर अन्तर्सम्बन्ध परस्पर पूरकता का है।

6. गवेषणा जीवनदृष्टि के आयाम "गवेषणा की सत्य की अवधारणा" पर विचार - गवेषणा सर्वसम्मति से स्वीकार करता है कि गवेषणा के मत में गवेषणा जीवन दृष्टि के लिए तर्कीय रूप से उपयुक्त सत्य की यह अवधारणा है कि सत्य वह जो सार्वजनिक रूप से भौतिक, सैद्धांतिक, तर्कीय, गणतीय, प्रमाणों से या अन्य तौर पर सत्यापनीय हो।

वर्तमान आमसभा में मात्र इतना विस्तार उचित होगा कि -

  i.    तथ्य - जो इंद्रिय प्रत्यक्ष या इंद्रियों की क्षमता में वृद्धि करने वाले वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा सार्वजनिक रूप से भौतिक सत्यापनीय हो।

ii.    अवधारणा - जो तर्कीय सत्यापनीय हो

iii.    विचार- जो गणतीय सत्यापनीय हो।

iv.    इतिहास - जो प्रमाणों से सत्यापित हो अवधारणाओं से नही। इस सम्बंध में यह अवश्य स्वीकार किया जाना समीचीन होगा कि किसी भी धर्म की कोई पुराणकथा गवेषणा में इतिहास के रूप में कभी मान्य नही होगी।

      गवेषणा सर्वसम्मति से स्वीकार करता है कि अन्य अभिमत स्वीकृत होने तक गवेषणा के लिये यही सत्य के अनिवार्य मापदंड है।

7. मानव गरिमा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, उनके अन्तर्सम्बन्ध व गवेषणा सत्य की अवधारण को गवेषणा जीवनदृष्टि या गवेषणीय निष्ठा के रूप में व्यहारिक अनुप्रयोग अनिवार्य करने पर विचार- गवेषणा सर्वसम्मति से यह संकल्प स्वीकार करता है कि गवेषणा जीवनदृष्टि या गवेषणीय निष्ठा के रूप में मानव गरिमा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा गवेषणा सत्य की अवधारणा को गवेषणा से सरोकार रखने वाले सभी व्यक्तियों, सदस्यों, कर्मचारियों, कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवको व व्यवहारियों द्वारा व्यवहारिक रूप से अनुप्रयोग किया जाना अनिवार्य है। जो इन जीवन मूल्यों के परिपालन का यथासम्भव प्रयास नही करेगा, गवेषणा उससे कोई सरोकार नही रखेगा। जो इन जीवन मूल्यों के विपरीत आचरण करेगा या विपरीत आचरण को प्रोत्साहित करेगा गवेषणा उसके विरुद्ध ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के तहत अभियोजन लाने का प्रयास करेगा। यह संकल्प सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है।

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THE NEWS GRIT 22 April 2025
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