श्रमिकों की आवाज़, उनके संघर्ष और अधिकारों की गूंज को वैश्विक पहचान देने वाला एक दिन - यही है अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस। यह दिवस एक साधारण तिथि नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा की मांग का प्रतीक है। इतिहास गवाह है कि दुनिया भर में मज़दूरों ने अपने हक के लिए शोषण, अन्याय और दमन के खिलाफ खड़े होकर लड़ाइयाँ लड़ीं, बलिदान दिए और श्रम को सम्मान दिलाने की दिशा में रास्ता बनाया। उनकी यही चेतना आज भी हमें यह स्मरण कराती है कि किसी भी राष्ट्र की आर्थिक रीढ़ वही लोग हैं जो अपने श्रम से निर्माण करते हैं, चलाते हैं और आगे बढ़ाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस इसी सत्य को रेखांकित करता है – कि बिना श्रमिक के कोई विकास संभव नहीं। यह अवसर न केवल श्रम की महत्ता को रेखांकित करता है, बल्कि हमें उस सामाजिक समरसता और न्याय की ओर लौटने का आमंत्रण भी देता है जहाँ श्रमिक को केवल साधन नहीं, सम्मान के योग्य मानव समझा जाए।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
19वीं सदी के दौरान औद्योगिकीकरण के चलते बड़ी संख्या में श्रमिक वर्ग का उदय हुआ। मगर इन श्रमिकों को अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में काम करना पड़ता था – 15 से 16 घंटे का कार्यदिवस, बिना सुरक्षा के कारखानों में काम, और न्यूनतम मजदूरी। इन कठोर और असमान कार्य स्थितियाँ और परिस्थितियों के विरोध में अनेक देशों में श्रमिक संगठनों ने आवाज़ उठाई।
हेमार्केट आंदोलन (शिकागो, अमेरिका – 1886)
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस की ऐतिहासिक नींव 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में हुए एक असाधारण और निर्णायक श्रमिक आंदोलन से जुड़ी है, जिसे ‘हेमार्केट आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। उस समय अमेरिका में श्रमिक अत्यधिक लंबे कार्यदिवस-15 से 16 घंटे-में बिना किसी सामाजिक सुरक्षा या अधिकार के काम करने को विवश थे। इसी अन्याय के विरुद्ध 1 मई 1886 को हजारों श्रमिकों ने ‘8 घंटे कार्यदिवस’ की माँग को लेकर संगठित हड़ताल और रैलियाँ की। आंदोलन के दौरान 4 मई को शिकागो के हेमार्केट स्क्वायर पर एक शांतिपूर्ण रैली आयोजित की गई, लेकिन तभी एक अज्ञात व्यक्ति ने भीड़ में बम फेंका जिससे कई पुलिसकर्मी और आम नागरिकों की मृत्यु हो गई। इसके बाद स्थिति और भी गंभीर हो गई-कई निर्दोष श्रमिक नेताओं को बिना ठोस प्रमाण के गिरफ्तार कर फाँसी की सजा दे दी गई। यह घटना दुनिया भर में मजदूरों के अधिकारों और बलिदान की प्रतीक बन गई। ‘हेमार्केट मामला’ केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि श्रमिक वर्ग की न्याय और गरिमा के लिए दी गई कुर्बानी की एक अमिट छाप बन गया। यही कारण है कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में मान्यता दी गई, जो आज भी श्रमिक अधिकारों की चेतना और संघर्ष का प्रतीक है।
अंतर्राष्ट्रीय मान्यता
हेमार्केट आंदोलन की पृष्ठभूमि में उपजे श्रमिक चेतना और अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता के प्रभाव को देखते हुए, 1889 में पेरिस में आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन (Second International Socialist Congress) में यह ऐतिहासिक निर्णय लिया गया कि 1 मई को हर वर्ष श्रमिकों के संघर्ष, बलिदान और अधिकारों की स्मृति में एक वार्षिक दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यह घोषणा न केवल अमेरिका के घटनाक्रम का सम्मान थी, बल्कि वैश्विक स्तर पर श्रम के मूल्य और श्रमिक एकता की स्वीकृति भी थी। पहला अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई 1890 को मनाया गया था। इसके बाद 1 मई को धीरे-धीरे दुनिया के अनेक देशों ने ‘Labour Day’ या ‘International Workers’ Day’ के रूप में अपनाया और यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक आंदोलन का एक सशक्त प्रतीक बन गया।
भारत में मज़दूर दिवस का आगमन
भारत में अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1923 को हुई, जब इसे पहली बार मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में मनाया गया। इस ऐतिहासिक पहल के पीछे थे लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान के संस्थापक और प्रखर समाजवादी विचारक कामरेड सिंगारवेलु चेट्टियार, जिन्होंने देश में श्रमिकों के अधिकारों और चेतना को संगठित रूप देने के लिए यह आयोजन किया। यही वह अवसर था जब भारत में पहली बार सार्वजनिक रूप से लाल झंडे (Red Flag) का उपयोग किया गया, जो बाद में श्रमिक आंदोलनों और वर्ग संघर्ष का वैश्विक प्रतीक बन गया। यह आयोजन केवल एक दिवस समारोह नहीं था, बल्कि भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन और श्रमिक जागरूकता की विचारधारा की नींव रखने वाला एक ऐतिहासिक कदम था। उस समय जबकि देश स्वतंत्रता संग्राम से जूझ रहा था, यह आयोजन यह दर्शाता है कि सामाजिक न्याय और श्रमिक अधिकार भी भारतीय संघर्ष का अभिन्न अंग रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रमुख संगठन और संधियाँ हैं, जैसे-
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization)
यह संगठन संयुक्त राष्ट्र का एक हिस्सा है और इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके कामकाजी जीवन को बेहतर बनाना है। ILO ने श्रमिकों के लिए वैश्विक मानक निर्धारित किए हैं, जैसे न्यूनतम वेतन, काम के घंटे, कार्यस्थल पर सुरक्षा, महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष सुरक्षा, आदि।
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक अधिकार समझौते (International Labour Rights Agreements)
कई देशों ने ILO द्वारा निर्धारित श्रमिक अधिकारों को अपनाया है, जैसे काम के घंटे की सीमा, सुरक्षा मानक, और श्रमिकों के कल्याण के लिए योजनाएँ। इनमें संवेदनशील क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए विशेष सुरक्षा और ओवरटाइम काम के लिए उचित भुगतान शामिल हैं।
मानवाधिकार घोषणाएँ और श्रमिक अधिकार
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों द्वारा श्रमिकों के अधिकारों को मानवाधिकार के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है। ये घोषणाएँ श्रमिकों को काम के स्थान पर उचित सम्मान और सुरक्षा देने की आवश्यकता पर बल देती हैं।
प्रोविडेंट फंड और पेंशन योजनाएँ
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों ने श्रमिकों के भविष्य के लिए पेंशन योजनाएँ, प्रोविडेंट फंड और स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ लागू की हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य श्रमिकों की सेवानिवृत्ति के बाद उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
मातृत्व लाभ और समान वेतन
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के संदर्भ में विभिन्न देशों में महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ और समान वेतन के अधिकार पर भी बल दिया जाता है। ILO के द्वारा निर्धारित मानकों के तहत देशों को महिलाओं के लिए उपयुक्त कार्यस्थल और समान वेतन की गारंटी देनी होती है।
अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस केवल श्रमिकों का उत्सव नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतना का पर्व है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हर निर्माण के पीछे कोई मज़दूर खड़ा है, हर विकास के पीछे उसका पसीना है। 1 मई केवल तारीख नहीं, बल्कि समानता, संघर्ष और सम्मान का प्रतीक है।