Skip to Content

श्याम बेनेगल

25 December 2024 by
THE NEWS GRIT

श्याम बेनेगल: समानांतर हिंदी सिनेमा के अग्रणी!!

on December 25, 2024

श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा के उन व्यक्तित्वों में से हैं, जिन्होंने अपने यथार्थवादी दृष्टिकोण और समाज के ज्वलंत मुद्दों को सिनेमा के माध्यम से प्रस्तुत करने की अनूठी क्षमता के कारण सिनेमा की दिशा और धारणा को बदला। 1940 और 50 के दशक में भारतीय सिनेमा मुख्यतः मनोरंजन पर आधारित था, लेकिन 1970 के दशक में समानांतर सिनेमा आंदोलन ने समाज की वास्तविकताओं को दर्शाने का बीड़ा उठाया। श्याम बेनेगल इस आंदोलन के अग्रदूत बने और उन्होंने समानांतर सिनेमा को एक नई पहचान दी।

श्याम बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को आंध्र प्रदेश के सिकंदराबाद में हुआ। उन्होंने उस समय की सामाजिक असमानताओं और आर्थिक विषमताओं को नजदीक से देखा, जो बाद में उनके सिनेमा का आधार बनी। बेनेगल ने मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक किया और सिनेमा की ओर रुख किया। शुरुआत में उन्होंने विज्ञापन फिल्मों का निर्देशन किया, जिससे उनके तकनीकी कौशल को धार मिली।

1974 में श्याम बेनेगल की पहली फीचर फिल्म 'अंकुर' रिलीज हुई। यह फिल्म एक ग्रामीण महिला के संघर्ष और सामाजिक असमानता को गहराई से चित्रित करती है। फिल्म ने न केवल आलोचकों का ध्यान खींचा बल्कि समाज में व्याप्त जातिगत और लैंगिक भेदभाव पर चर्चा को भी प्रेरित किया। इस फिल्म ने शबाना आज़मी जैसी अद्वितीय अभिनेत्री को भी लॉन्च किया। इसके बाद आईं 'निशांत' (1975), 'मंथन' (1976) और 'भूमिका' (1977) जैसी फिल्में, जिन्होंने समानांतर सिनेमा को मजबूती दी। इन फिल्मों में समाज के वंचित वर्गों, महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण भारत की समस्याओं और आर्थिक विषमताओं को प्रमुखता से उजागर किया गया।

'मंथन' भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपनी अनूठी फंडिंग मॉडल के लिए जानी जाती है। इस फिल्म का निर्माण 5 लाख किसानों के छोटे-छोटे योगदान से हुआ था। यह फिल्म श्वेत क्रांति और सहकारी आंदोलन पर आधारित थी। व्यवसायिक सिनेमा के इतर श्याम बेनेगल की फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे यथार्थवादी हैं। उनकी फिल्मों में भव्य सेट और नाटकीय घटनाओं के बजाय साधारण इंसानों की कहानियां होती हैं। संवादों और अभिनय में प्राकृतिकता का होना उनकी फिल्मों का प्रमुख गुण है।

कहानी प्रस्तुतीकरण के अलावा श्याम बेनेगल का महत्वपूर्ण योगदान जिसे बार बार सराहा जाना चाहिए कि आपके द्वारा निर्मित फिल्मों से सिनेमा को शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, ओम पुरी, और नसीरुद्दीन शाह जैसे अभिनेता मिले। उनके निर्देशन में ये कलाकार न केवल चमके, बल्कि समानांतर सिनेमा की आत्मा बने। श्याम बेनेगल को उनके योगदान के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले। उन्हें पद्म श्री (1976), पद्म भूषण (1991), और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2005) से सम्मानित किया गया। उनकी फिल्मों ने कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीते। श्याम बेनेगल के सिनेमा का महत्व आज भी बना हुआ है। उन्होंने सिनेमा को मनोरंजन से आगे बढ़ाकर सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया। उनकी फिल्में दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती हैं और उन्हें समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के जीवन में झांकने का अवसर देती हैं।

श्याम बेनेगल ने अपने सिनेमा के माध्यम से न केवल समाज की सच्चाई को उजागर किया, बल्कि सिनेमा को समाज का दर्पण बनाया। उनकी फिल्मों ने यह साबित किया कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह बदलाव लाने का एक सशक्त माध्यम भी हो सकता है। उनके योगदान के बिना समानांतर सिनेमा की कल्पना अधूरी है।


- The News Grit, 25/12/2024

in News
THE NEWS GRIT 25 December 2024
Share this post
Tags 
Our blogs
Archive