कुछ कर गुजरने के लिए धन की ही नहीं, बल्कि मजबूत मन, सच्ची लगन और एक उपयोगी विचार की आवश्यकता होती है। जब इन सभी का संगम होता है, तो व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अवसर तलाश कर सकता है। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है, मण्डी बाम्होरा विकासखण्ड बीना की श्रीमती जमना अहिरवार की, जिन्होंने कूड़े-कचरे को अपना हथियार बनाकर न केवल अपना बल्कि अपने परिवार और समूह की अन्य महिलाओं का जीवन बदल दिया।
यात्रा की शुरुआत
श्रीमती जमना अहिरवार की कहानी एक साधारण महिला की असाधारण सोच का परिणाम है। वे अन्नपूर्णा स्व सहायता समूह से जुड़ी थी, और धीरे-धीरे समूह के माध्यम से उन्होंने सामूहिकता, आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वावलंबन की शक्ति को समझा।
समूह का ` पूरा होने के बाद उन्हें 6 लाख रुपये की लिंकेज राशि प्राप्त हुई। इसी से उन्होंने 2 लाख रुपये का ऋण लिया और उसे आधार बनाकर फेंके जाने वाले कचरे के व्यापार की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने कचरा खरीदना शुरू किया, उसे प्रोसेस करके बाजार में बेचना शुरू किया और धीरे-धीरे अपने छोटे से कारोबार को एक मजबूत उद्यम में बदल दिया।
बैंक लिंकेज का अर्थ है स्व-सहायता समूहों (SHG) को वित्तीय संस्थाओं से जोड़ना, जिससे वे अपने सामूहिक बचत खाते के माध्यम से ऋण प्राप्त कर सकें। जब कोई समूह नियमित बचत और वित्तीय लेनदेन करता है, तो बैंक उसकी साख को देखते हुए उसे एक निश्चित सीमा तक ऋण प्रदान करता है। इसे ही बैंक लिंकेज कहा जाता है। यह योजना खासतौर पर ग्रामीण और वंचित वर्ग की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से बनाई गई है। जमना अहिरवार के समूह को भी 6 लाख रुपये की बैंक लिंकेज राशि मिली, जिससे उन्होंने 2 लाख रुपये का ऋण लेकर अपने व्यवसाय की नींव रखी। इस प्रकार, बैंक लिंकेज समूहों को बिना किसी बड़ी पूंजी के भी उद्यम शुरू करने का अवसर देता है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है।
परिवार और समुदाय की ताकत
इस काम में उनका साथ दिया उनके पति, ससुर और जेठ ने। वे पहले मजदूरी करते थे, लेकिन आज वे सभी मिलकर अपने ही व्यापार में श्रम कर आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इतना ही नहीं, जमना अहिरवार ने अपने समूह की चार अन्य महिला सदस्यों को भी इस व्यवसाय से जोड़ा और उन्हें रोजगार का अवसर दिया।
तकनीक और समझदारी – उद्यमिता की कुंजी
लगभग 18 से 20 महीने पहले उन्होंने 3.10 लाख रुपये की लागत से एक कटर मशीन खरीदी। यह मशीन प्लास्टिक, रबर, और पॉलीथीन जैसे कचरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने का कार्य करती है। वे खुदरा व्यापारियों से यह कचरा खरीदती हैं और फिर उसकी छंटाई कर उसे प्रसंस्करण के लिए तैयार करती हैं। उनकी टीम विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक को श्रेणियों में विभाजित करती है, जिन्हें तकनीकी भाषा में मिक्स पी.पी., व्हाइट पी.पी., नेचुरल पी.पी., एच.डी., सेकंड ड्रम, फर्स्ट ड्रम, फर्स्ट चेयर, आदि नामों से जाना जाता है। इन सभी को पैक कर इंदौर जैसे बड़े शहरों में भेजा जाता है, जहाँ इनका दोबारा उपयोग किया जाता है।
मुनाफा और विकास
श्रीमती जमना अहिरवार बताती हैं कि सभी खर्चों को निकालकर वे हर महीने 60 से 70 हजार रुपये की शुद्ध कमाई कर लेती हैं। शुरू में जहाँ उनकी लागत पूंजी 40 से 50 हजार रुपये थी, वहीं आज वे 5 लाख रुपये तक का कच्चा माल खरीदने की क्षमता रखती हैं। यह बदलाव उनकी मेहनत, अनुशासन और सोच के कारण संभव हो सका है।
उन्होंने हाल ही में 2.35 लाख रुपये की प्रेस मशीन भी खरीदी है, जो प्लास्टिक की थालियाँ, बॉटल, ड्रिप सेट आदि को दबाकर समरूप चौकोर पैकेट में बदल देती है। इससे माल को संगठित ढंग से स्टोर और ट्रांसपोर्ट करना आसान हो जाता है।
प्रशासन की सराहना और समर्थन
सागर जिला कलेक्टर श्री संदीप जी.आर. ने श्रीमती जमना अहिरवार की सराहना करते हुए कहा कि वे उन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो लीक से हटकर सोचने का साहस रखती हैं। उन्होंने अपने नेतृत्व कौशल, निर्णय क्षमता और निडरता से यह सिद्ध कर दिया है कि आत्मनिर्भरता किसी भी सामाजिक या आर्थिक वर्ग के लिए असंभव नहीं है।
कलेक्टर ने बताया कि जिला प्रशासन स्व-सहायता समूहों को व्यवसाय स्थापना में हर संभव सहायता प्रदान कर रहा है, ताकि वे ऋण, प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोग प्राप्त कर सकें। उन्होंने यह भी कहा कि बैंक लिंकेज को प्राथमिकता देकर स्वीकृतियाँ बढ़ाई जा रही हैं जिससे पूंजी की कमी आड़े न आए।
बड़ा संदेश – कचरे में भी छिपा है खज़ाना
श्रीमती जमना अहिरवार की कहानी हमें यह सिखाती है कि समस्या में भी समाधान छिपा होता है, बशर्ते हम उसे सही दृष्टिकोण से देखें। आमतौर पर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक, रबर, और पॉलीथीन जैसे कचरे को उन्होंने आर्थिक संसाधन में बदल दिया। उन्होंने यह दिखाया कि जहाँ लोग अंत देखते हैं, वहां से भी शुरुआत की जा सकती है। अगर हमारे पास नवाचार, मेहनत और हिम्मत हो।
महिला सशक्तिकरण का सशक्त उदाहरण
इस कहानी का सबसे सुंदर पक्ष यह है कि यह केवल एक महिला की सफलता नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय की उन्नति है। जमना अहिरवार ने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि समूह की अन्य महिलाओं को भी रोजगार और सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अवसर दिया। वे एक उदाहरण हैं कि यदि महिलाओं को सही मार्गदर्शन, संसाधन और अवसर मिले, तो वे न केवल परिवार, बल्कि पूरे समाज की दिशा बदल सकती हैं।
श्रीमती जमना अहिरवार की कहानी आज के युवाओं, विशेषकर महिलाओं के लिए प्रेरणा है। यह दिखाती है कि अगर मन में संकल्प है, तो साधन और अवसर रास्ता खुद बना लेते हैं। कचरे को आमदनी में बदलने का यह सफर एक नया दृष्टिकोण देता है – यह बताता है, कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास साथ-साथ चल सकते हैं। उन्होंने दिखाया कि अगर मन में कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो, तो हालात चाहे जैसे भी हों, इंसान अपने जीवन की दिशा खुद तय कर सकता है। उनकी यह यात्रा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह समाज के उन हजारों लोगों के लिए प्रकाश-पथ है, जो संघर्षों में भी उम्मीद की लौ जलाए हुए हैं।