मध्य प्रदेश में स्थित वीरांगना रानी दुर्गावती (नौरादेही) टाइगर रिजर्व न केवल राज्य का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है, बल्कि यह जैव विविधता, पारिस्थितिकी और वन्यजीवन संरक्षण की दिशा में एक नया उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहा है। यहां विस्थापन के बाद खाली हुए गांवों की जमीन पर विकसित किए गए घास के मैदानों ने न सिर्फ परिदृश्य को बदला है, बल्कि वन्य प्रजातियों के लिए एक अनुकूल आवास भी उपलब्ध कराया है। खास तौर पर शाकाहारी जानवरों की संख्या में जो तीव्र वृद्धि हुई है, उसने इस क्षेत्र को वन्यजीव पर्यटन और बाघों के संरक्षण दोनों ही दृष्टियों से और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।
विस्थापन से अवसर तक
वर्ष 2010 में अफ्रीकी चीतों को भारत में बसाने के लिए नौरादेही क्षेत्र का सर्वेक्षण किया गया था। इस पहल के तहत 2014 में गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके परिणामस्वरूप कई गांवों को हटाकर उनकी जमीन को पुनः प्राकृतिक आवास में परिवर्तित किया गया। भले ही नौरादेही को आधिकारिक रूप से 20 सितंबर 2023 को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला, लेकिन उससे पूर्व ही संरक्षण कार्य प्रारंभ हो चुके थे। सागर और नरसिंहपुर जिलों के कई गांवों के विस्थापन के बाद वहां की परित्यक्त कृषि भूमि को घास के मैदानों में परिवर्तित किया गया।
घास के मैदानों का महत्व
किसी भी जंगल के स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए घास के मैदान अत्यंत आवश्यक होते हैं। ये न केवल शाकाहारी जानवरों के लिए भोजन का स्रोत होते हैं, बल्कि उनके आवास, प्रजनन और विश्राम के लिए भी उपयुक्त स्थान प्रदान करते हैं। साथ ही, ये मैदान मिट्टी और जलस्रोतों के संरक्षण में भी सहायक होते हैं। नौरादेही में भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों ने चीता पुनर्वास के लिए किए गए सर्वेक्षण में भी ग्रासलैंड बढ़ाने की सिफारिश की थी। वर्तमान में यहां करीब 6-7% क्षेत्रफल घास के मैदानों से आच्छादित है, जिसे बढ़ाकर 12% करने का लक्ष्य है।
काले हिरणों की वापसी: आशाजनक संकेत
इन घास के मैदानों में सबसे उल्लेखनीय परिवर्तन काले हिरणों की संख्या में हुई वृद्धि है। पहले ये हिरण अधिकांशतः खेत-खलिहानों के आसपास देखे जाते थे, लेकिन अब ये संरक्षित घास के मैदानों में मस्ती से कुलांचे भरते नजर आ रहे हैं। वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे द्वारा लिए गए फोटोज और वीडियो इस बात का प्रमाण हैं कि काले हिरण इन मैदानों में पूर्णतः सहज और सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यह स्थिति न केवल इस दुर्लभ प्रजाति के संरक्षण के लिए उत्साहजनक है, बल्कि बाघ जैसे मांसाहारी जानवरों के लिए भी पर्याप्त शिकार उपलब्ध होने का संकेत है।
बाघ संरक्षण के लिए उपयुक्त आधार
शाकाहारी जीवों की प्रचुरता मांसाहारी वन्यजीवों के लिए स्थायी आवास सुनिश्चित करती है। यही कारण है कि नौरादेही टाइगर रिजर्व में शाकाहारी जीवों की संख्या में वृद्धि बाघ संरक्षण के लिए बेहद सकारात्मक संकेत मानी जा रही है। बड़े-बड़े घास के मैदानों में चीतल, सांभर, नीलगाय और अब काले हिरण जैसे जानवर बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं। इनकी मौजूदगी से यह स्पष्ट होता है कि भविष्य में यह क्षेत्र बाघों और चीतों के लिए आदर्श आवास बन सकता है।
प्रबंधन की सक्रिय भूमिका
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. ए. ए. अंसारी के अनुसार, काले हिरणों की बढ़ती उपस्थिति सीधे-सीधे ग्रासलैंड के विकास से जुड़ी है। विस्थापित गांवों की जमीन पर योजनाबद्ध ढंग से घास के मैदान तैयार किए गए हैं। वे कहते हैं कि वर्तमान में 6-7% ग्रासलैंड है, लेकिन जल्द ही इसे 12% तक ले जाने की योजना है। उनका यह भी कहना है कि काले हिरण और भेड़िए इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उनका सहअस्तित्व जैव विविधता के लिए बेहद आवश्यक है।
इकोटूरिज्म और जागरूकता
नौरादेही टाइगर रिजर्व में वन्यजीव प्रेमियों और पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। काले हिरणों के झुंड, घास के मैदानों में चीतलों की चहल-पहल और वन्यजीवों की सहजता पर्यटकों को आकर्षित कर रही है। इस क्षेत्र को इको-टूरिज्म के रूप में विकसित करने की संभावनाएं प्रबल हैं। पर्यावरणीय शिक्षा, स्थानीय रोजगार और संरक्षण जागरूकता की दृष्टि से भी यह प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
आगे की दिशा: संतुलन और सतत विकास
नौरादेही टाइगर रिजर्व के भविष्य के लिए आवश्यक है कि संरक्षण और समुदाय की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाया जाए। स्थानीय निवासियों को संरक्षण प्रयासों में सक्रिय भागीदार बनाना, और उनके लिए वैकल्पिक आजीविका के अवसर सुनिश्चित करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। साथ ही, तकनीकी निगरानी, वैज्ञानिक शोध, और वन्यजीव-अनुकूल बुनियादी ढांचे का विस्तार इस क्षेत्र को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आदर्श उदाहरण बना सकता है।
वीरांगना रानी दुर्गावती (नौरादेही) टाइगर रिजर्व का यह अनुभव दर्शाता है कि यदि योजनाबद्ध ढंग से विस्थापन, पारिस्थितिकी संरक्षण और सामुदायिक सहभागिता को जोड़ा जाए, तो एक परित्यक्त भूमि को भी समृद्ध जैविक क्षेत्र में बदला जा सकता है। घास के मैदानों की बहाली और काले हिरणों की मौजूदगी, बाघों और चीतों के लिए एक मजबूत आधार बना रही है। यह मॉडल देश के अन्य टाइगर रिजर्व और संरक्षित क्षेत्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रहा है।