5 जून, पर्यावरण दिवस के अवसर पर गवेषणा संस्था, सागर (मध्यप्रदेश) में एक विलक्षण व विचारोत्तेजक परिचर्चा आयोजित की गई। इस परिचर्चा का मुख्य विषय था – ‘पेड़-पौधों की आपसी बातचीत: पेड़ों का इंटरनेट कनेक्शन’। इस रोचक विषय पर मुख्य वक्ता थे रानी अवंतीबाई लोधी विश्वविद्यालय के विजिटिंग फैकल्टी, डॉ. चंदन सिंह।
डॉ. सिंह रानी अवंतीबाई विश्वविघालय में कार्यरत है, और एग्रीकल्चर साइंस में Visiting faculty के रूप में कार्यरत है। डॉ. सिंह ने Research के दौरान एक अध्याय प्लांट इंटरनेट कनेक्शन लिखा। और उन्होने इस विषय पर संवाद कुछ इस प्रकार किया-
क्या पेड़ आपस में बात करते हैं?
इस प्रश्न का उत्तर है – हां, लेकिन मनुष्यों की तरह नहीं! पेड़-पौधे ‘वर्बल कम्युनिकेशन’ नहीं करते, परंतु वे एक-दूसरे से संकेतों, रसायनों और भूमिगत नेटवर्क के माध्यम से संवाद करते हैं। इसे रूट-टू-रूट कम्युनिकेशन कहा जाता है।
जब किसी पौधे को कोई बीमारी लगती है, तो वह हवा में एक विशेष रसायन छोड़ता है जिसे वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (VOCs) कहते हैं। ये रसायन पास के पौधों तक पहुंचते हैं, जो उन्हें अपने पत्तों के माध्यम से ग्रहण कर लेते हैं और इस संकेत से उन्हें बीमारी या हमले की चेतावनी मिल जाती है। इससे वे तुरंत अपनी रक्षा प्रणाली सक्रिय कर लेते हैं।
टमाटर के पौधे और चेतावनी प्रणाली
जब आप टमाटर के खेत में धीरे-धीरे चलते हैं तो कुछ विशेष अनुभव नहीं होता। लेकिन अगर आप तेज़ी से उनके पास से गुजरें और पौधों से शरीर का हल्का टकराव हो, तो पौधे एक खास गंध छोड़ते हैं – यह चेतावनी संकेत होता है। यह गंध ‘बॉस केमिकल’ कहलाती है जो आस-पास के पौधों को सचेत करती है कि खतरा मंडरा रहा है।
पौधों का ‘डिजिटल एनवायरनमेंट’ और स्ट्रेस
पौधे भी तनाव (stress) अनुभव करते हैं – जैसे जलवायु की अनुकूलता न होना, पोषण की कमी, या जल संकट। यह स्ट्रेस ‘जियोलॉजिकल स्ट्रेस’ होता है और जब कोई पौधा इसे अनुभव करता है तो वह केमिकल के माध्यम से अन्य पौधों को सूचित करता है।
उदाहरणस्वरूप, यदि एक कद्दू के पौधे को किसी फंगल बीमारी का हमला होता है, तो वह तुरंत संकेतों के माध्यम से अन्य कद्दू पौधों को सावधान कर देता है ताकि वे अपनी रक्षात्मक प्रणाली सक्रिय कर सकें। इस तरह अन्य पौधे पहले से ही तैयार हो जाते हैं और संक्रमण से बच जाते हैं।
मदर ट्री और ‘हब नेटवर्क’
प्राचीन और विशालकाय वृक्षों को मदर ट्री या हब ट्री कहा जाता है। जैसे इंटरनेट का हब सर्वर होता है, वैसे ही ये पुराने वृक्ष विशाल ज्ञान व अनुभव के भंडार होते हैं। वे अपने आसपास के छोटे पौधों को पोषण, संकेत और ‘प्राकृतिक शिक्षा’ प्रदान करते हैं। यह ज्ञान और पोषण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता रहता है।
ये वृक्ष अपने अनुभवों के आधार पर आने वाले जलवायु परिवर्तनों को पहचान सकते हैं और तदनुसार अपने जैविक व्यवहार में परिवर्तन भी करते हैं। जब उनकी पत्तियाँ गिरने लगती हैं, तो वे उसमें बचे हुए पोषक तत्वों को पहले जड़ों के माध्यम से मिट्टी में लौटा देते हैं ताकि बाकी पौधों को वह पोषण मिल सके।
रूट इंजेक्शन और केमिकल सिग्नलिंग
पेड़ अपनी जड़ों के माध्यम से मिट्टी में केमिकल कंपाउंड छोड़ते हैं जिन्हें रूट इंजेक्शन कहा जाता है। इससे मिट्टी में रहने वाले लाभकारी सूक्ष्मजीव सक्रिय हो जाते हैं और पौधे को संक्रमण से लड़ने में सहायता करते हैं।
जब पेड़ को लगता है कि भविष्य में फंगल संक्रमण हो सकता है, तो वह उन मित्र फंगस या बैक्टीरिया को आमंत्रित करता है जो उसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान कर सकें। यह संवाद अत्यंत जटिल परंतु प्रभावशाली होता है।
जल संकट के समय संवाद
जब किसी पौधे को पानी की कमी का अनुभव होता है, तो वह अपने पड़ोसी पौधों को जड़ केमिकल सिग्नलिंग द्वारा सूचित करता है। इसके परिणामस्वरूप अन्य पौधे अपने विकास को धीमा कर देते हैं – जैसे नए पत्ते बनाना बंद करना, फलों का आकार सीमित करना, और परिपक्व फलों को जल्द गिरा देना – ताकि जल की खपत कम हो।
‘वुड वाइड वेब’ – प्रकृति का इंटरनेट
पौधों के बीच का यह संवाद ‘वुड वाइड वेब’ के माध्यम से होता है, जिसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्यूज़न सिमार्ड ने सिद्ध किया। यह एक भूमिगत मायकोराईज़ल फंगल नेटवर्क है जिसे कटक जल (Mycorrhizal Network) कहा जाता है। यह फंगल नेटवर्क पेड़ों की जड़ों को जोड़ता है और उन्हें एक-दूसरे से संदेश, पोषण और चेतावनियाँ साझा करने में मदद करता है।
प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक आचार्य जगदीश चंद्र बोस ने 1901 में सिद्ध किया था कि पेड़ भी दर्द महसूस करते हैं और प्रतिक्रिया देते हैं। उन्होंने एक उपकरण के माध्यम से यह सिद्ध किया था।
परिचर्चा की गरिमा
इस चर्चा में जिज्ञासा लाइब्रेरी में अनेक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। कार्यक्रम में डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल तिवारी, गवेषणा के अध्यक्ष श्री मनोहर लाल चौरसिया, कल्पधाम डायरेक्टर श्री रमेश चौरसिया एवं श्री पुरुषोत्तम चौरसिया, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. वशिष्ठ सेलवन, जानी-मानी साहित्यकार सुश्री शरद सिंह तथा इंजीनियर सारांश गौतम की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
पेड़–पौधे केवल हरित जीवन का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे से संवाद करने वाले जीवित प्राणी हैं। उनका यह संवाद तंत्र हमें यह सिखाता है कि प्रकृति में हर जीवन इकाई के बीच सहयोग, सतर्कता और सामूहिक बुद्धिमत्ता का बारीक जाल है।
इस पर्यावरण दिवस पर हमें यह समझने और स्वीकारने की आवश्यकता है कि पेड़ों को काटना केवल लकड़ी का नुकसान नहीं है, बल्कि ज्ञान, अनुभव, और एक जटिल संवाद तंत्र का भी विनाश है।
“पेड़ों से संवाद की भाषा सीखिए, क्योंकि वे प्रकृति के सबसे मौन लेकिन ज्ञानी शिक्षक हैं।”