भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 5 साल बाद रेपो रेट में कमी की है। 7 फरवरी 2025 को RBI ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट को 6.50% से घटाकर 6.25% कर दिया है। यह निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने और महंगाई दर को नियंत्रण में रखने के उद्देश्य से लिया गया है। जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो इसका प्रभाव बैंकों द्वारा दी जाने वाली ऋणों की ब्याज दरों पर भी पड़ता है, जिससे ग्राहकों को सस्ते लोन मिलते हैं।
RBI गवर्नर संजय मलोत्रा ने कहा की बैठक में इकोनॉमी डेवलपमेंट को लेकर चर्चा की गई, और गवर्नर ने कहा कि हमने बैठक में फैसला किया है कि रेपो रेट को घटाया जा रहा है अब रेपो रेट 6.50 से घटाकर 6.25 किया जा रहा है। रेपो रेट की कटौती के बाद अब आपके लोन कि इएमआई कम हो जाएगी। गवर्नर ने कहा की ग्लोबल इकोनॉमी चुनौतियों से गुजर रहा है, साथ ही वैश्विक स्तर पर मंहगाई बढ़ रही है। जिस कारण दुनिया भर में इकोनॉमी का असर बढ़ रहा है, भारतीय रूपया भी प्रेशर में है रिजर्व बैंक के सामने कई चनौतियां है।
लेकिन अखिर क्या है ये रेपो रेट आइए जरा विस्तार से जानते है-
रेपो रेट (Repo Rate) वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) बैंकों को शॉर्ट-टर्म लोन प्रदान करता है, जब उन्हें पैसे की ज़रूरत होती है। इसे "रेपो" (Repurchase Agreement) इसलिए कहा जाता है क्योंकि बैंकों को जब पैसे की ज़रूरत होती है, तो वे अपनी सरकारी सिक्योरिटी (जैसे बांड) को RBI को बेचते हैं, और बाद में उसे एक तय तारीख पर वापस खरीदने के लिए सहमति जताते हैं।
साधारण शब्दों में, रेपो रेट वह ब्याज दर है जो RBI बैंकों से लोन लेते वक्त लगाता है, और यह बैंकों को उधारी लेने के लिए एक संकेतक होता है।
रेपो रेट का महत्व:
ब्याज दरों पर असर: जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों को महंगे दाम पर पैसे मिलते हैं, और इसलिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन की ब्याज दरें भी बढ़ सकती हैं। वहीं, जब रेपो रेट घटता है, तो बैंकों के लिए पैसा सस्ता हो जाता है और वे ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर लोन देने में सक्षम होते हैं।
महंगाई नियंत्रण: RBI रेपो रेट का इस्तेमाल महंगाई को नियंत्रित करने के लिए करता है। जब महंगाई बहुत बढ़ जाए, तो RBI रेपो रेट बढ़ा सकता है, ताकि खर्च घटे और महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सके।
आर्थिक विकास में योगदान: अगर अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही हो, तो RBI रेपो रेट घटा सकता है, जिससे बैंक सस्ते लोन दे सकें और लोग ज्यादा खर्च कर सकें, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ सके।
संक्षेप में, रेपो रेट एक महत्वपूर्ण मौद्रिक नीति उपकरण है जो भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाता है।
रेपो रेट का कार्य करने का तरीका:
बैंक और RBI के बीच लेन-देन:
- जब बैंकों को पैसे की आवश्यकता होती है (जैसे, उनके पास पर्याप्त नकदी न हो), तो वे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से शॉर्ट-टर्म लोन लेते हैं।
- इसके बदले में, बैंक अपनी सरकारी सिक्योरिटीज (जैसे बांड) RBI को गिरवी रखते हैं। ये सिक्योरिटीज बैंकों के पास सुरक्षित होती हैं और RBI के लिए एक तरह की सुरक्षा का काम करती हैं।
- इस लोन पर जो ब्याज दर लागू होती है, वही रेपो रेट होती है।
रेपो रेट का असर:
o रेपो रेट बढ़ने पर: जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए पैसे उधार लेना महंगा हो जाता है। इसका असर ये होता है कि बैंकों द्वारा दी जाने वाली ऋणों (Loans) की ब्याज दरें भी बढ़ जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं के लिए EMI (मासिक किस्त) भी महंगी हो जाती है। इससे खर्च में कमी आ सकती है और महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
o रेपो रेट घटने पर: जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंकों के लिए पैसे उधार लेना सस्ता हो जाता है। इसका असर ये होता है कि बैंकों की ऋण दरें कम हो जाती हैं और EMI भी घट जाती है। इससे उपभोक्ता ज्यादा लोन ले सकते हैं और अधिक खर्च कर सकते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में गति आ सकती है।
ब्याज दरों की दिशा तय करना:
- RBI रेपो रेट को बढ़ाने या घटाने का निर्णय महंगाई और आर्थिक विकास के आधार पर लेता है।
- अगर महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ रही हो (उदाहरण के लिए, खाद्य वस्तुएं या पेट्रोल-डीजल के दाम बहुत बढ़ रहे हों), तो RBI रेपो रेट बढ़ाकर महंगाई पर काबू पाने की कोशिश करता है।
- यदि अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही हो, तो RBI रेपो रेट घटाकर उधारी सस्ती करता है, ताकि लोग ज्यादा खर्च करें और आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ें।