बेटियां अभिशाप नहीं, वरदान होती हैं। वे दो कुलों को आगे बढ़ाने वाली शक्ति होती हैं। अगर उन्हें सही दिशा, साथ और समर्थन मिले, तो वे हर वो सपना साकार कर सकती हैं, जिसे समाज कभी असंभव समझता था। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है मध्य प्रदेश के सागर की बहादुर बेटी इशिता शर्मा की, जिन्होंने अपने मजबूत इरादों और कठिन मेहनत के बल पर भारतीय नौसेना में सब लेफ्टिनेंट का गौरव हासिल किया है।
जब सपना बना संकल्प और संकल्प बना उपलब्धि
इशिता का बचपन सेना के अनुशासित माहौल में बीता। उनके पिता दीपक शर्मा, जो मिलेट्री इंजीनियरिंग सर्विस में अधिकारी हैं, ने परिवार में देशसेवा की भावना को पनपने दिया। इशिता ने इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकम्युनिकेशन में बीटेक करने के बाद टीसीएस जैसी प्रतिष्ठित मल्टीनेशनल कंपनी में मुंबई में नौकरी की, लेकिन मन हमेशा वर्दी और देश सेवा के प्रति ही आकर्षित रहा। यही जज्बा उन्हें वापस एसएसबी की ओर खींच लाया।
दादा-दादी की छांव में मिली शिक्षा की नींव
इशिता के पिता की नौकरी की प्रकृति के कारण लगातार स्थानांतरण होते रहे, ऐसे में इशिता की स्कूली शिक्षा की ज़िम्मेदारी निभाई दादा आर.एस. शर्मा और दादी सुशीला शर्मा ने। सागर में रहकर उन्होंने अपनी हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई पूरी की। दादा-दादी के लिए सबसे गर्व का क्षण वह था, जब 31 मई 2025 को उन्होंने अपनी पोती को इंडियन नेवी की वर्दी में सब लेफ्टिनेंट बनते देखा।
मल्टीनेशनल नौकरी नहीं रोक सकी जज्बा
मुंबई में आईटी जॉब मिलना बहुत से युवाओं का सपना होता है, लेकिन इशिता का मन वहाँ नहीं लगा। उनका सपना सेना की वर्दी पहनना था। इसीलिए उन्होंने एसएसबी की कठिन तैयारियां शुरू की। अंततः 2024 में उनका चयन हुआ और वे केरल के कुन्नूर जिले के एझीमाला स्थित इंडियन नेवल अकादमी में ट्रेनिंग के लिए पहुँचीं। कठोर ट्रेनिंग को पार करते हुए, उन्होंने 31 मई 2025 को सब लेफ्टिनेंट की पासिंग आउट परेड में हिस्सा लिया और देश की नौसेना का हिस्सा बनीं।
माता-पिता के लिए भी आसान नहीं था ये निर्णय
हालाँकि इशिता के पिता खुद सेना में अधिकारी हैं, लेकिन एक पिता के नाते बेटी को कठिन और जोखिम भरे सैन्य जीवन की ओर भेजना उनके लिए एक कठिन परीक्षा थी। बेटी से अत्यधिक स्नेह और उसकी महत्वाकांक्षा के बीच उन्होंने भारी मन से निर्णय लिया और बेटी को अकादमी में भेजा। वहीं माँ गरिमा शर्मा, अपनी बेटी के बुलंद इरादों के साथ हमेशा खड़ी रहीं।
नौसेना में लेफ्टिनेंट पद की जिम्मेदारी और गौरव
भारतीय नौसेना में लेफ्टिनेंट का पद अत्यंत जिम्मेदारी भरा होता है। इस पद पर तैनात अधिकारी के अधीन लगभग 50 से 60 सैनिक होते हैं, और वह एक इकाई का प्रमुख होता है। लेफ्टिनेंट को ₹60,000 से लेकर ₹1.5 लाख से अधिक तक वेतन और अन्य सुविधाएं प्राप्त होती हैं। अनुभव और पदोन्नति के साथ ये वेतन और सुविधाएं बढ़ती जाती हैं। इशिता शर्मा ने इस पद को प्राप्त कर यह दिखा दिया कि बेटियां हर चुनौती को पार कर सकती हैं, बशर्ते उन्हें समर्थन और अवसर मिले।
इशिता की जुबानी: "बेटियां किसी से कम नहीं"
इशिता कहती हैं,
“अगर माता-पिता और परिवार का साथ हो तो बेटियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं। मेरे दादा-दादी और माता-पिता ने कभी यह नहीं कहा कि लड़की हो, सेना जैसी मुश्किल नौकरी कैसे कर पाओगी। सभी ने मेरे फैसले का सम्मान किया और मेरा हौसला बढ़ाया। कठिन ट्रेनिंग के दौरान परिवार का साथ ऐसा रहा कि मैंने कभी महसूस ही नहीं किया कि यह एक चुनौतीपूर्ण समय है।”
समाज से मिली सराहना
सागर की इस बेटी की उपलब्धि पर कलेक्टर श्री संदीप जी.आर. ने बधाई और शुभकामनाएँ प्रेषित कीं। उन्होंने कहा,
“बेटियां किसी से कम नहीं हैं। आवश्यकता है बस उन्हें सही दिशा देने की और प्रोत्साहित करने की। इशिता ने साबित कर दिया है कि बेटियां न सिर्फ अपने परिवार बल्कि पूरे देश का सम्मान बढ़ा सकती हैं।”
इशिता शर्मा की यह उपलब्धि सिर्फ एक व्यक्तिगत सफलता नहीं है, यह हर उस बेटी के लिए प्रेरणा है जो बड़े सपने देखती है और उन्हें साकार करने का हौसला रखती है। यह कहानी उन परिवारों के लिए भी संदेश है कि बेटियों को रोकिए मत, उनके सपनों को साकार करने में उनकी सहायता और हौसला बनकर उनका साथ दीजिए जिससे इशिता जैसी हर लड़की को उसके सपनों की उड़ान मिल सके।